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लेखनी प्रतियोगिता -22-Mar-2022

एक बार गए थे हम घुम्ने दिल्ली से बिहार
खाली रास्ता देख पहुंचा बढा दी थी रफ्तार
और गाड़ी चली गई थी तब 140 के पार

140 की रफ्तार देख कर मज़ा आ रहा था
हमारा समूह हमको तब यह समझा रहा था
मैं समझ गया कि दिल उनका घबरा रहा था।

जोश जोश में अंधे हो उनके डर को‌ भूला बैठा
अपनी ड्राईवरी पर कुछ ज्यादा ही इतरा बैठा
जब मज़ा आने लगा तो अपना होश गंवा बैठा

सायरन बजाते हुए पुलिस हमारे पीछे आ गई
सुन आवाज सायरन की रफ्तार भी 40 पर आ गई
देख सामने पुलिस माथे पर बूंद पसीने की छा गई

ओवरटेक करके पुलिस ने गाड़ी को साइड में रोका
कुछ बोलने दिया न मुझे, पटक पटक कर ठोका
ऐसे मौके पर तो अक्सर साथी भी दे देते हैं धोखा

बहती गंगा मे सब सहयात्री भी हाथ साफ कर गए
इतना मारा कि आँख कान भी नीले काले कर गए
टूटी-फूटी हालत में साथी कंधे पर छोड़ मेरे घर गए

दो दिन डाक्टर के आदेश से मैं पलंग पे पड़ा रहा
दवा पता नहीं कैसी थी कि होश मेरा उड़ा रहा
साथियों की पागलपंती पर मन ही मन कुढा रहा

शपथ लेकर उस दिन से अब मैं गाड़ी धीरे चलाता हूँ.
एम्बुलेंस के सायरन से भी, अब तो मैं डर जाता हूं
नेशनल हाइव पे अब तो मैं, बैलगाड़ी से हार जाता हूँ


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7 Comments

जी बहुत ही खूबसूरत रचना अप्रतिम। घुमने , भुला, हाईवे शुद्ध कर लीजिए।

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Swati chourasia

23-Mar-2022 09:22 AM

वाह बहुत ही मजेदार 😀😀

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Punam verma

23-Mar-2022 09:18 AM

Very nice

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